Saturday, March 4, 2017

कितने किरवले मारोगे ?

मराठी भाषा के प्रकांड विद्वान एवं अंबेडकरवादी चिंतक प्रोफैसर कृष्णा किरवले को कोल्हापुर में उनके आवास पर चाकुओं से गोदकर निर्मल तरीके से मार डाला गया ।
शिवाजी यूनिवर्सिटी के मराठी विभाग के प्रमुख रहे प्रोफेसर  किरवले ने  ग्रामीण मराठी साहित्य की बहुत सेवा की ,62 वर्षीय प्रोफ़ेसर किरवले  की हत्या का भी वही पैटर्न था जो प्रोफेसर कलबुर्गी और गोविंद पानसरे की हत्या का था।

 आखिर इस देश में हो क्या रहा है ? हम विचारवान लोगों को बर्दाश्त क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? प्रोफेसर किरवले जैसे लोगों हमारे लिए गौरव का विषय होने चाहिये, मगर हमारे समाज में फैल रही कट्टरता और नफरत के चलते अब कवियों , लेखकों कलाकारो ,बुद्धिजीवियो को मारा जा रहा है ।

 देश भर में स्वतंत्र विचार और असहमत अभिव्यक्तियों को रौंदा जा रहा है । विश्वविद्यालय जो कि दिमागी संकीर्णताओं को मिटाने के केंद्र है अब वहीं जेहनी गुलामी थोपने के सारे इंतजाम किए जा चुके है । अभिव्यक्ति की आजादी पर राष्ट्रवाद की लाठी हर क्षण चल रही है । संस्कृति के स्वयंभू पहरेदार और देशप्रेम के स्वघोषित ठेकेदारों ने ऐसी दहशतगर्दी फैला रखी है कि उनके सामने हिटलर का नाजीवाद भी बौना लगने लगा है।

 जो लोग किताबें पढ़ते तक नहीं हैं ,वे  किताबों पर प्रतिबंध लगवा रहे है । कई किताबें फिर से लुगदी में तब्दील हो चुकी है । जिन्हें कला की समझ नहीं वह कलाकारों को निर्देश दे रहे हैं । जिनको सिनेमा का क ख ग तक नहीं आता, वे अब तय कर रहे हैं कि फिल्मों में कंटेंट क्या होगा ? अब जातीय सेनाएं सेंसर बोर्ड का स्थान ले रही है । चित्रकार अपनी कूची से क्या उकेरेंगे , यह अब चरमपंथी समूहों के सरगना तय कर रहे हैं और बुद्धिजीवियों को क्या बोलना चाहिए तथा विचारवंतों को क्या लिखना चाहिए, यह रूढि़वादी, मूलतत्ववादी ,कट्टरपंथी लोग तय कर रहे हैं ।

अजीब दौर से भारत गुजर रहा है । कहने को तो लिखने की ,बोलने की , अभिव्यक्त करने की आजादी है , पर इस आजादी को इस्तेमाल करने के बाद जीने की कोई आजादी  नहीं है । अभी हमने नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड गोविंद पंसारे प्रोफ़ेसर कलबुर्गी और प्रोफेसर किरवले को खोया है ,आगे और न जाने कितने दाभोलकर ,पंसारे , कलबुर्गी और किरवले हमको खोने है ? 

 दक्षिणपंथी फासीवाद का यातना गृह अभी बहुत सारों की प्रतीक्षा में हैं क्योंकि जो भी आजाद खयाल होंगे ,स्वतंत्र रूप से लिखेंगे , बोलेंगे और विचार करेंगे । वे सभी उन्मादी भीड़ के हाथों मारे जाएंगे । हम मनुवादी फासिज्म के भयंकर दौर में जी रहे हैं , जहां आज फिर बोलने पर जीभ काटी जाएगी ,लिखने पर गालियां एवं गोलियां मिलेगी और निर्मम तरीके से कत्ल तक किए जाएंगे । 

हम उस भयानक समय के साक्षी हैं जहां सर्वोच्च सत्ता स्वयं नरभक्षी हो चुकी है । ऐसे में यह सत्ता और  उसके द्वारा पोषित गुण्डा तत्व न जाने कितने विचारशील ,तर्कशील, वैज्ञानिक चेतना के धनी विचारवंतों की जान लेगी ,यह आज का सबसे बड़ा सवाल है । 

अब भी समय है जब हमें जागना होगा , खड़ा होना होगा ,क्योंकि यह सिर्फ प्रोफेसर कृष्णा किरवले की मौत नहीं है, यह सिर्फ एक अंबेडकरवादी विचारवंत की हत्या मात्र नहीं है बल्कि उस विचार की भी हत्या है ,जो स्वतंत्र रूप से सोचता है बोलता है ,लिखता है और लोगों को जेहनी गुलामी से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है । यह सबके दिमागों का कत्ल है। यह विचारों का कत्ल है ,  यह मानव सभ्यता की विचारसरणी और उसके शब्दों का वध है । इंसानियत के  विरूद्ध हो रही इस साजिश के खिलाफ हमें बोलना होगा । सिले हुये मुंह को खोलना होगा ।

- भंवर मेघवंशी 
(संपादक-  शून्यकाल यूट्यूब चैनल )

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