Friday, March 3, 2017

धर्म ध्वनियों का आतंक !

अक्सर विभिन्न धर्मस्थलों से अलसुबह ,चिलचिलाती दुपहरी और अलसाई सी शामों को जब दिल चाय पीने की इच्छा करता है और आराम का तलबगार होता है ,तब कानफोडू आवाज़ों में अल्लाह ईश्वर को पुकारने की प्रतिस्पर्धा सी होने लगती है .अगर आपका घर किसी ईश्वरीय निवास के नजदीक है तो आप जरुर हर दिन भगवानों के आतंक से दो चार होते होंगे .धर्म अच्छे भले शांत नागरिक की नींद हराम कर देता है और वह शांति देने के बजे अशांति देने लगता है .

भारत में प्रचलित लगभग सारे धर्म इतने शोरगुल को क्यों पसंद करते है ,यह आज तक मैं नहीं समझ पाया .रात रात भर सत्संगे ,जगराते ,मिलाद और मंत्रजाप भयानक किस्म की आवाज़ों में चलते है .कहीं कहीं तो अत्यंत कर्कश स्वरों के मालिक भी अपने मालिक को पुकारते रहते है .मुझे तो यकीं है कि इनका मालिक एकदम बहरा हो गया होगा ,इतनी ऊँची आवाज़ों को बर्दाश्त करते करते .

संत कबीर ने कभी कहा था कि जिसे चीटीं की पदचाप तक सुनाई दे जाती है ,उसको सुनाने के लिये बांग लगा रहे हो ,क्या तुम्हारा खुदा बहरा है ? बहुत हिम्मत की कबीर साहब ने उस ज़माने में .आज होते तो धार्मिक भावनाएं आहत करने के जुर्म में 295 ( ए) के तहत जेल पंहुच जाते .

बांग तो मुल्ला जी और पंडित जी अब भी वैसी ही लगा रहे है ,बल्कि उससे भी ज्यादा .माईक लगा कर ,पर अब खरी खरी कहने वाले कबीर नहीं है .चारों तरफ चिल्लपों मची हुई है .विचारविहीन भीड़ की अराजकता है .तमाम किस्म के ध्वनि नियंत्रक कानूनों के बावजूद धर्म के नाम पर ध्वनि प्रदूषण जारी है .जो बोले उसको जेल का खेल हो रहा है .इसलिये ईश्वर का नाम सुनने की इच्छा है या नहीं पर मजबूरन सुननी ही पड़ रही है .करोड़ों लोग इन धर्म ध्वनियों के मारे हुये है ,अकेले में आलोचना करते है ,मगर आमने सामने बात करने अथवा पुलिस में जा कर कम्पलेंट करने की हिम्मत कोई बिरला ही दिखा पाता है .

पर इसी निराशाजनक माहौल से उम्मीद की किरणें भी फूटेगी. अच्छी खबर यह है कि फूटने भी लगी है ,साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के प्रशासन ने इस ध्वन्यात्मक आतंक पर लगाम लगाने की शुरुआत विगत कुछ समय से कर रखी है .जिला प्रशासन ने विभिन्न धर्मस्थलों पर लगे माईकों की आवाज़ को कम करवा दिया है और उनके लिए समय सीमाओं का भी निर्धारण किया है .अब रात रात भर माईक पर गला फाड़ने की इजाज़त नहीं है .रैलियों में ,रात्रि जागरणों में ,कवि सम्मेलनों में ,शादियों में ,मेलों में ,महिला संगीतों में बजने वाले डीजे साउंड जब्त किये जा रहे है .

एक स्थान पर तो जिला कलेक्टर की मौजूदगी में ही शिक्षक समुदाय की देशभक्ति डीजे के ज़रिये फूट पड़ी .जिलाधिकारी कार्यक्रम छोड़ कर चले गये और मास्टरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया .शिक्षक और डीजे वाला बाबू गिरफ्तार हो गये तथा डीजे जब्त हो गया .हालाँकि शिक्षक संगठनों ने जिला कलक्टर की इस कार्यवाही के प्रति आक्रोश जताया ,लेकिन जनता ने इसका स्वागत ही किया .इतना ही नहीं एक जगह पर तो कविगण कविता पाठ से ही वंचित रह गये ,पर श्रोताओं को शांति मिली .

एक जिला ऐसा कदम उठा सकता है तो क्या अन्य जिले नहीं उठा सकते ? विज्ञान और टेक्नोलोजी के विरोधी पंथ ,सम्प्रदाय , धर्म , मजहब माईक के इस्तेमाल के बारे में अपने धर्मग्रंथों की गाईडलाईन के बारे में खामोश क्यों रहते है ? उन्हें बताना चाहिए कि उनके पवित्र ग्रन्थ माईक ,डीजे ,मोबाईल ,मोटरगाड़ी ,जींस और हवाई जहाज तथा ट्रेन के उपयोग के बारे में क्या कहते है ? सुविधाएँ लेने और शोरगुल मचाने में अपने मन की बात करते है और अन्य जन को पीड़ित करने में सदैव आगे रहने वाले लोग धार्मिक नहीं हो सकते है.वे शुद्ध रूप से राजनीतिक लोग है .वे धर्म का भी राजनीतिक उपयोग ही कर रहे है .

इस भयंकर कोलाहल को धर्म नहीं ढोंग कहा जाना चाहिये .यह तो मजहब के नाम पर मक्कारी ही है .पर बोलेगा कौन ? जो भी बोलेगा ,मुंह खोलेगा ,वह देशद्रोही हो जायेगा .इसलिए अधिकांश लोग इस ध्वनी आतंक से आतंकित होने के बावजूद भी चुप ही रहने में भलाई समझे हुये है .

- भंवर मेघवंशी
( संपादक - शून्यकाल यूट्यूब चैनल ) 

No comments:

Post a Comment