Friday, March 3, 2017

अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए प्रयासरत एक युवा - ललित दार्शनिक

सीकर जिले के नीम का थाना कस्बे के 30 वर्षीय युवा ललित दार्शनिक जगदीश प्रसाद यादव तथा कमला देवी के सबसे बड़े बेटे है। उन्होंने अपने ही कस्बे के सेठ नंदकिशोर पटवारी राजकीय महाविद्यालय से दर्शन शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।

बचपन से ही उनका सपना सामाजिक कार्यकर्ता बनने का रहा है,पर वे ऐसा काम करना चाहते थे ,जिसे आम तौर पर लोग नहीं करना चाहते हो । सोचते सोचते अचानक उनको एक दिशा मिल गई। अगस्त 2013 में प्रगतिशील विचारक डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का समाचार उनकी नज़र से गुजरा । उनकी रूचि जगी कि दाभोलकर के विचारों में ऐसा क्या था कि उनकी हत्या की नौबत आ गई। अख़बारों, किताबों और ऑनलाइन सामग्री से ललित को दाभोलकर के मिशन के बारे में जानने को मिल गया। ललित दार्शनिक को जैसे अपने जीवन का उद्देश्य हासिल हो गया था। उन्होंने तय किया कि वे अब अंधश्रद्धा और पाखंड के उन्मूलन के लिए काम करेंगे।
पर कैसे करेंगे इसका कुछ पता नहीं था। अब से पहले वो खुद अंध विश्वासों में डूबे हुए थे। पूजा पाठ,कर्मकांड और घनघोर आस्तिकता उन पर हावी थी। इसलिए सबसे पहले उन्होंने खुद को बदलने का संकल्प लिया। ललित आज बड़े गर्व से कहते है कि -' पिछले 3 सालों से मैं नास्तिक के रूप में जीने का प्रयास कर रहा हूँ। सारे धार्मिक क्रियाकर्म छूट गए है,अब हर चीज़ को वैज्ञानिक नजरिये से देखने लगा हूँ।जब तक जान नहीं लेता ,कुछ भी नहीं मानता ।'

ललित दार्शनिक सोशल मीडिया के ज़रिये लोगों में तर्कशीलता और वैज्ञानिक समझ बढाने के लिए प्रयासरत है। वे चमत्कारों के ख़िलाफ़ लोगों के बीच जा कर ना केवल बात कर रहे है ,बल्कि कथित चमत्कारों का वैज्ञानिक रीति से पर्दाफाश भी करने में लगे हुए है।उनका कहना है कि -" दुनिया में चमत्कार जैसा कुछ भी नहीं होता है।हरेक घटना के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण होता है।जब तक हम उस कारण को नहीं जानते ,तब तक वह हमारे लिए रहस्य या चमत्कार बना रहता है।जब हम उस कार्य के कारण को समझ लेते है तो फिर वह चमत्कार नहीं रह जाता ".

ललित दार्शनिक कई प्रयोगों एवं रासायनिक संयोगों का प्रर्दशन करके भी लोगों को जागरूक करते है ।वे तलवार से हाथ काटना और खून नहीं निकलने देना ,बिना माचिस आग लगाना, पानी से दीपक जलाना ,फोटो से भभूत निकालना, पानी से चीनी बनाना ,देवी देवताओं का दर्शन करवाना और उन्हें गायब कर देना ,निम्बू से खून निकालना तथा तीन फीट की तलवार को मुंह में निगल जाना आदि काम करके दिखाते है।वे इनको चमत्कार नहीं मानते,इसके बारे में लोगों को जानकारी देते है तथा उसका कारण स्पष्ट करते है।
ललित देश भर में कार्यरत तर्कशील सोसायटियों से भी जुड़े हुए है।उनका संपर्क अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति महाराष्ट्र से भी जुड़ाव है।

ललित ने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए मृत्य पश्चात देहदान का भी संकल्प लिया है और इसी वर्ष 13 जनवरी को सवाई मानसिंह मेडिकल कालेज जयपुर को अपनी देह का दान कर दिया है। उनका कहना है कि अंतिम संस्कार और मृत्यभोज जैसे अंध विश्वासों को टक्कर देना बहुत जरुरी है।वैस्व भी देहदान मरने के बाद भी जीने का सबसे शानदार तरीका है।

ललित दार्शनिक ने अपने जीवन का उद्देश्य विज्ञान के प्रति लोगों को जागरूक करना बनाया है।उन्होंने परिवर्तनम नामक एक संगठन की स्थापना की है ,जिसके ज़रिये वे स्कूलों ,कॉलेजों तथा अन्य जगहों पर जा कर लोगों में वैज्ञानिक चेतना ,तर्कशीलता और प्रगतिशील मूल्यों के प्रति जानकारी देना चाहते है।

एक ऐसे दौर में जबकि अंधश्रद्धाओं के अँधेरे ने सारी मानवीय चेतना को कुंद करने का भयानक माहौल बना रखा है ,ऐसे में ललित दार्शनिक जैसे स्वतंत्र सोच के प्रगतिशील युवा भारतीय समाज के लिए उम्मीद के जुगनू बन कर चमक रहे है ,यह बहुत ही आशाजनक बात है ।हालाँकि उनको भी अंधभक्तों की तरफ से गालियां व धमकियां मिलने लग गई है मगर इससे वे तनिक भी विचलित नहीं है,क्योंकि उनका मानना है कि विरोध हमारे काम एवं विचार को मान्यता मिलने की दिशा में पहला कदम है ।

-भंवर मेघवंशी
( संपादक - शून्यकाल यूट्यूब चैनल )

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