Wednesday, April 5, 2017

कोई नहीं मरता अचानक एक दिन में !

कोई एक दिन में नहीं मरता
कई दिन लग जाते है
एक व्यक्ति को मरने में .

कई बार तो कई कई
साल तक मरना पड़ता है
कभी कभी पल पल
हर क्षण मरना पड़ता है .
हर दिन कुछ कुछ
मरते रहने से
मर जाता है व्यक्ति
अचानक .

मरना तो उसी दिन
शुरू हो जाता है
जब कर दिया जाता है
अकेला समूह से
छोड़ दिया जाता है
या ठुकरा दिया जाता है
धकेल दिया जाता है परे
अपनों से .

मरने लगते  है आप तब ,
जब रिश्तों पर हावी
होने लगता है काम
फिर प्यार प्रतिशतों में
नापा जाने लगता है
ले लेता  है जब
कोई और आपकी जगह
आप मरने लगते है
उसी क्षण .
पर उसी समय
मर नहीं जाते
बस मरना शुरू
कर रहे होते है .
प्यार में एकतरफा निर्वासन
भी मारता है
शनैः शनैः
मरना तो कई
मौकों पर निरंतर
जारी रहता है
मगर
 पता कहा चल पाता है
इस धीमी मौत का .

पंखे या पेड़ पर
लगा कर फांसी का फंदा
आत्महत्या कर लेना भी
एकदम मरना नहीं होता
फांसी के फंदे तक
पंहुचने का पूरा सफ़र भी तो
मौत का ही सफ़र होता है .

वैसे तो मरना
रोज़ रोज़ का काम है
कोई नहीं मरता अचानक
मर रहा होता है
मौत से पहले से
कई बरसों ,दिनों ,घंटों से
मगर कभी कभी
अचानक भी मरता है इन्सान .

ऐसा सिर्फ तब होता है
जब व्यक्ति सच को सच कहते हुए
डरने लगता है
सब कुछ देखता है
समझता है
सोचता भी है
मगर खामोश रहता है
क्योकि वह डर जाता है .

जब इन्सान सच को सच
कहते हुए डरने लगता है
बस उस दिन
पूरी तरह मर जाता है
अंतिम बार
वास्तव में .

- भंवर मेघवंशी
( सम्पादक - शून्यकाल यूट्यूब चैनल )






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