हो ची मिन्ह की धरा पर
( पहला दिन )
प्रिय लेखक जितेंद्र भाटिया की पुस्तक ‘ सोचो साथ क्या जायेगा ‘ के चौथे खंड में वियतनाम को उन्होंने ‘फ़ीनिक्स पक्षी सी कालजयी धरती’ कहा है.
वियतनाम का इतिहास चार हज़ार साल पुराना है,उसने लगभग एक हज़ार साल तक बाहरी हमलावरों को झेला,लगभग सौ साल तो वह फ़्रांस का उपनिवेश रहा,फिर 21 साल साम्राज्यवादी अमेरिका के साथ भयानक युद्ध लड़ा और जीता.
इस लम्बे युद्ध में वियतनाम के 20 लाख लोग मारे गए,लेकिन वह देश एक अजर अमर आत्मा के रूप में फ़ीनिक्स पक्षी की भाँति फिर से उठ खड़ा हुआ और आज एक सोशलिस्ट रिपब्लिक के रूप में शांतिप्रिय मुल्क के रूप में विध्यमान है.
मैं और हंसराज जी 30 अप्रेल तक यहाँ हैं.यह सफ़र महज़ सैर सपाटा नहीं है,यह एक इंक़लाबी ज़िंदादिल मुल्क से मुलाक़ात का मौक़ा होगा.
आज हनोई सिटी का आधे दिन का ट्यूर होगा,जिसमें सबसे पहले हम वियतनाम के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों में से एक “हो ची मिन्ह समाधि “ पर जायेंगे और कवि,लेखक और नेता हो ची मिन्ह के जीवन और वियतनाम के सभी लोगों के लिए स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के लिए उनकी लड़ाई तथा जीत की कहानी से रूबरू होंगे.
समाधि परिसर से बाहर निकलते समय,कमल के फूलों की सुंदरता से घिरे,अपनी वास्तुकला की विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध वन-पिलर पैगोडा पर रुकना होगा,तत्पश्चात वियतनाम के पहले विश्वविद्यालय “ टेम्पल ऑफ़ लिट्रेचर” जायेंगे,जिसकी स्थापना 11वीं शताब्दी में में हुई थी,यह विश्वविद्यालय एक ऐतिहासिक परिसर के रूप में सैकड़ों वर्षों से गर्व से खड़ा रहा है.
आज पहला दिन है,रात बारह बजे दिल्ली से प्रस्थान करके सुबह पाँच बजे हनोई पहुँचे,थोड़ी नींद और थोड़ी थकान है,पर फ़िनिक्स पक्षी सी कालजयी धरा से साक्षात का रोमांच भी है.
( दूसरा दिन )
आज शटल बस से हनोई से हालोंग बे का सफ़र होगा.दोपहर तक हम हालोंग इंटरनेशनल हार्बर पहुँच जायेंगे,वहाँ से विक्ट्री क्रूज़ पर सवार होंगे,आज का सफ़र और लंच व डिनर क्रूज़ पर रहेगा,वहाँ से बांस की नाव द्वारा लुओन गुफा का भ्रमण होगा,शाम टिटोन द्वीप पर होगी,रात्रि विश्राम वापस विक्ट्री पर आ कर होगा.
कल का दिन बहुत मज़ेदार था,दोपहर होने तक हम लोग शहर के मध्य से गुजर रही रेलवे लाइन जिसे ट्रेन स्ट्रीट कहा जाता है,उस पर चलते गुजरी,हर रेस्टोरेंट में काफ़ी, भरी दोपहरी में भी ड्रिंक्स और सिगरेट का धुआँ यहाँ आम बात है,उसके बाद हो ची मिन्ह की समाधि और उनके निवास,राष्ट्रपति आवास,वन पीलर पेगोडा गए जहां बुद्ध महिला के स्वरूप में विराजित है,जिनके कईं हाथ और नेत्र कल्पित किये गए हैं,यह हज़ार से भी ज़्यादा साल पुरानी संरचना है.
यहाँ बुद्धिज्म का पंचशील ध्वज और कम्यूनिज़्म का लाल फरारा साथ साथ लहरा रहे थे,रास्ते में एक और बौद्ध विहार में रुकना हुआ,जहां पर बड़ी संख्या में भिक्खु ओम मणि पद्मेहुम का समवेत स्वरों में वियतनामी भाषा में पाठ कर रहे थे.यहाँ लगे झंडों में बुद्ध के जन्म और उनके बाल्यकाल के बारे में चित्र थे.फिर बाज़ार का भ्रमण हुआ.
सफ़र के समापन से पहले प्रथम वियतनामी यूनिवर्सिटी देखी गई जो 11वी सदी में स्थापित हुई थी,यहाँ से ग्रेजुएट हुए हज़ारों लोगों के नाम शिलाओं पर उत्कीर्ण किये गए है.पढ़ना,समझना और शिक्षित दीक्षित हो कर उस ज्ञान का लोक के लिए उपयोग करना इस विश्वविध्यालय के स्नातकों के लिए अनिवार्य होता था.हमारी गाइड सू ली जो कि बेहद विनम्र और ज्ञानी युवती थी,उसने बताया कि साहित्य हम वियतनामियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है,इसलिए इस यूनिवर्सिटी का नाम भी टेंपल ऑफ़ लिट्रेचर रखा गया था.
जब वियतनाम फ़्रेंच का उपनिवेश था,तब का बना विशाल चर्च पर्यटकों और स्थानीय लोगों के आकर्षण का केंद्र है,कुछ समय वहाँ बिताया और अंत में हम वन मियु लेक पहुँचे,यह अत्यंत भीड़ भरा क्षेत्र है,हनोई सिटी ट्यूर वाली गाड़ियाँ यहीं से चलती है,खूबसूरत प्राचीन इमारतें और देश दुनियाँ से आए भिन्न भिन्न संस्कृतियों के लोगों की आवाजाही मन मोहक थी,थोड़ी देर झील को निहारा और फिर उसके किनारे किनारे चलते हुए होटल स्काई हनोई लौट गए.
रात में एक इण्डियन रेस्टोरेंट में दाल पालक और तंदूरी रोटियाँ मिल गई,दोपहर में तो जिस होटल में लंच था,वहाँ टेबल पर ही सी फ़ूड पका कर खिलाया गया,यह अनुभव भी अद्भुत रहा.दिन भर और देर रात तक हंस राज चौधरी जी की बातों का ख़ूब आनंद लिया गया और फिर थकान ऐसी थी कि नींद कब आई पता भी नहीं चला.
सुबह जगे,जल्दी से तैयार हुए कि क्रूज़ पर जाने के लिए बस लेने को होटल पहुँच गई है,ट्यूर गाइड का कॉल आ गया है,अब जाना होगा.
( तीसरा दिन )
कल दोपहर बाद हम हालोंग की खाड़ी पहुँचें जो यूनेस्को द्वारा संरक्षित एक विश्व धरोहर है,यह वियतनाम के क्वैंग नन्ह प्रान्त में एक लोकप्रिय पर्यटन केंद्र है.हालोंग का अर्थ है "अवरोही ड्रैगन".प्रशासनिक रूप से, यह वान डोन ज़िला का एक हिस्सा है.खाड़ी में विभिन्न आकृति और आकारों में हजारों चूना पत्थर के कर्स्ट और टापू हैं.
ऐसी ही एक सुंदर केव “हाँग लुओन” गुफा में वोटिंग का आनंद लेते हुए लोगों को देखा,यह रोमांचक तो था,मगर बेहद रिस्की भी लगा,पर्यटक भीड़ ने यहाँ स्थित बंदरों का जीना हराम कर रखा है.बंदर भी सोचते होंगे कि हमारे पुरखों की औलादें हमारे लिये कितनी हॉर्मफुल निकली है.
टिटॉप द्वीप पर स्विमिंग और हाइकिंग का विकल्प था,हमने 426 सीढ़ियाँ चढ़ना चुना.सनसेट रोमांचक अनुभव रहा,चढ़ना बेहद मुश्किल काम है और उतरना थोड़ा कम मुश्किल,गिरना तो सरल ही होता है.65 वर्षीय सहयात्री हंसराज जी मेरे से दस सीढ़ियाँ आगे ही चले,मैं रुक रुक कर चला,साँस फूलती रही.प्राकृतिक जगहें किसी पैथ लेब की जाँच सी होती है,अपनी कमज़ोरियों और क्षमताओं आराम से अहसास हो जाता है.
टिटॉप द्वीप हालोंग खाड़ी का एक अनमोल रत्न है,जो हालोंग हार्बर से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है,इस द्वीप का नामकरण 1962 में हुआ जब सोवियत अंतरिक्ष यात्री गेरमन टिटोव ने तत्कालीन राष्ट्रपति हो ची मिन्ह के साथ हालोंग खाड़ी का दौरा किया था.वियतनामी लोगों ने इस यात्रा से स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया,चूँकि अंतरिक्ष यात्री टिटोव हालोंग की सुंदरता से बहुत प्रभावित था, इसलिए द्वीप संख्या 48 का नाम बदलकर टिटॉप ( टिटोव का वियतनामी उच्चारण ) रखने का फैसला किया,ताकि दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत किया जा सके.बताया जाता है कि गेरमन टिटोव सन 1997 में द्वीप पर वापस आए.
रात्रि भोज बेहद लज़ीज़ था,यहाँ सर्वाहारियों से लेकर शाकाहारियों तथा वीगन तक के लिए व्यवस्था थी,हमें उबले चावल और तरीदार आलू की सब्ज़ी मिल गई,कद्दू का सूप और सलाद का स्वाद मज़ेदार था.जब हम क्रूज़ के रेस्टोरेंट के स्टाफ़ से भोजन सम्बंधी चर्चा कर रहे थे तो उनके रिएक्शन देखना बहुत आनंददायक था.क्योंकि यहाँ आ कर आप सी फ़ूड का आनंद न लें,आप कैसे पर्यटक है,यहाँ भी हम मिर्च मसाले और दालें खोजने में लगे थे,नूडल्स सुबह शाम खा पाना हमारे बस की बात न थी.
रात क्रूज़ पर बीती,आधी रात गए ऐसा लगा जैसे गोलीबारी हो रही है,दरअसल बादलों की गड़गड़ाहट और भारी बारिश ने समंदर में हलचल मचा रखी थी.रात में चारों तरफ़ पानी ही पानी देखकर कबीर का पद याद आया -“जल में कुंभ,कुंभ में जल है,बाहिर भीतर पानी।फूटा कुंभ,जल जलहिं समाना,यह तत कथौ गियानी.”
आज सुबह हमने क्रूज़ डेक पर ताईची का अभ्यास शुरू ही किया था कि बारिश शुरू हो गई.फिर रेस्टोरेंट में आ कर किया गया,यह मार्शल आर्ट की एक विधा है,कईं साल पहले दिसोम द लीडरशिप स्कूल से शुरुआती जुड़ाव के दौरान साथी अनीस विक्टर यह व्यायाम करवाते थे,तब सीखा था,आज वो सारी यादें ताज़ा हो गई.
सुबह खाड़ी में सूर्योदय का आनंद लिया,ब्रेड टोस्ट,केला,चाय और केक तथा ओरेंज जूस का अल्पाहार लिया,अब बरसती बरसात में हम लाइफ़ जैकेट पहन कर सुंग सोत गुफा के लिए प्रस्थान कर रहे हैं,यह हालोंग बे में सबसे बड़ी और सर्वाधिक आश्चर्यचकित करने वाली गुफा है,नाँव चल पड़ी है.
( चौथा दिन )
रात भर हो रही बारिश जब सुबह भी जारी रही तो दिल बैठने लगा,ऐसा महसूस हुआ कि आज सिर्फ़ ब्रंच ( ब्रेकफ़ास्ट एंड लंच का कॉम्बो ) से ही काम चला कर हालोंग की खाड़ी को विदा कहना होगा,लेकिन क्रूज़ के क्रू मेम्बर और हमारे ट्यूर गाइड महोदय तो हमें ले जाने को प्रतिबद्ध ही थे,जब उनसे पूछा तो बोले कि 7.20 पर राइट टाइम पर चल पड़ेंगे.
ट्रेवल एडवाइज़री के मुताबिक़ हल्के वस्त्र और अंब्रेला साथ होना ज़रूरी था,लेकिन सामान कम करने के चक्कर में मैं अपने शॉर्ट्स होटल हनोई स्काई में ही रख आया.ऐसे में फुल पैंट और मौजे सहित शूज पहने ही नाव में बैठ गया,गाइड ने मेरे जैसे तमाम यात्रियों के लिए इंतज़ाम किया हुआ था,हमें एक झीने प्लास्टिक का रैनकोट मयस्सर हुआ,हमारे बचपन जब तक छाते गाँवों में नहीं पहुँचे थे तो हम बारिश से बचने के लिए गूगी ओढ़ते थे,इसे पहन कर उसी बचपन वाली गूगी की याद हो आई.
हमारा आज का मुख्य आकर्षण सुंग सोत गुफाएँ थी,कहते हैं कि अमेरिका से दशकों तक चले युद्ध के दौरान वियतनामी लड़ाके इन्हीं गुफाओं में छिपे रहते थे और गुरिल्ला वॉर करते थे.
सुंग सोत गुफा यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहरों में से एक है.यह हालोंग खाड़ी में सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली जगहों में से एक है.यह गुफा ,जो कि बहुत सारी गुफ़ाओं की शृंखला जैसी है,लगभग एक हज़ार वर्ग मीटर से भी बड़ी है.गुफा की दीवारें चट्टानी हैं,इनमें सैंकड़ों लोग एक साथ रह सकते हैं,पहाड़ से रिस कर आने वाला पानी इस समुंदर में पेयजल के रूप में काम आता रहा होगा,अंदर जल भराव की संरचाएँ साफ़ नज़र आती है,सूरज की क़ुदरती रोशनी और आक्सीजन मिलने की पर्याप्त व्यवस्था प्राकृतिक रूप से मौजूद है.हालाँकि आजकल इस गुफा को कृत्रिम रोशनी से रोशन किया जाता है.
नीचे से प्रवेश द्वार पार करके मानवनिर्मित सीढ़ियों का पहला पड़ाव गुफा के मुहाने तक ले जाता है, और सीढ़ियों का दूसरा पड़ाव गुफा के विशाल व भव्य फर्श तक ले जाता है,इसकी भव्यता,विशालता और ऐतिहासिकता चमत्कृत करती है.मैं और हंस राज जी इतने उत्साहित थे कि हमने अपने सहयात्रियों और ट्यूर गाइड तक को पीछे छोड़ दिया,हम बस चले जा रहे थे,इतनी विकट,विषम और दुर्गम गुफ़ाओं से वियतनामियों ने दुनियाँ की सबसे बड़ी ताक़त कहे जाने वाले मुल्क अमेरिका से न केवल लड़ाई लड़ी,बल्कि उसे भागने को मजबूर कर दिया.
हमने सुंग सोत गुफ़ा में खड़े हो कर यहाँ के देशप्रेमी शहीदों को सलाम किया,वैसे भी रास्ते भर में हर गाँव और यहाँ तक कि खेतों में भी इन शहीदों की स्मृति में बने यादगार स्थलों की बड़ी तादाद बताती है कि इस देश ने कितना खोया है,बीस लाख से ज़्यादा नागरिक और सैनिक खोने वाला मुल्क जो इक्कीस साल युद्ध में रत रहा,जिसने हज़ार साल चीन का आधिपत्य झेला और जो एक फ़्रेंच कॉलोनी रहा,1975-2025 के महज़ 50 सालों में जिस तरह यह देश उठ खड़ा हुआ,वह बाकमाल है.क़ाबिले सलाम है.
वापस क्रूज़ पर लौट कर अपने केबिन के बाथरूम में गुनगुने पानी से नहा कर रेस्टोरेंट में ब्रंच हेतु पहुँचे,आज ड्रेगन फ़्रूट,तरबूज़,अन्नानास,नाशपाती और रोस्टेड टोस्ट तथा संतरे का जूस,आलू टिकिया सब कुछ मिल गया.भरपेट भकोस लेने के बाद बिल सैटल करने काउंटर पर पहुँच कर 20 डालर अतिरिक्त चुकाया और स्टाफ़ के साथ सेल्फ़ी ले कर बाय बाय कहा.
अब विक्ट्री क्रूज़ वापस हालोंग बे हार्बर को चल पड़ा था.टाटा की एक अत्याधुनिक मेटाडोर में बैठे, तीन बजे हनोई पहुँचे,अभी एयरपोर्ट पिकअप के लिए ड्राइवर को आने में एक घंटा था,इसलिए एक ओड़िशा के बंदे द्वारा संचालित तड़का रेस्टोरेंट गए,जल्दी से दाल रोटी ओर्डर की,जी भर कर खाया और पैदल ही होटल को रवाना हो गए,होटल हनोई स्काई पहुँचने में मात्र दस मिनट लगे,जा कर अपना सामान हस्तगत किया,होटल स्टाफ़ को धन्यवाद कहा,तब तक ड्राइवर के आने की सूचना मिल गई,सामान उठाया,कार में धरा और पहुँच गए नो बाई एयरपोर्ट,वेबचेक इन मैने रास्ते में कर लिया था,वियतजेट के काउंटर पर आधे घंटे की लाइन पार करके बैग ड्रॉप किए और अपना बोर्डिंग पास ले कर सुरक्षा जाँच की रस्म अदा की,छह बजते बजते गेट क्रमांक एक पर पहुँच गए,अभी सात बजे बोर्डिंग है और साढ़े सात बजे डानांग के लिए उड़ान है.नौ बजे तक पहुँच जाएँगे.
कल गोल्डन ब्रिज,27 मीटर ऊँची बुद्ध प्रतिमा और बा ना हिल्स जायेंगे,फ़्रेंच वास्तुकला के अद्भुत नमूने जॉर्डन ज़ोन को देखेंगे और लिन्ह उंग पैगोड़ा ( बुद्ध विहार ) जाने का मौक़ा मिलेगा.
( पाँचवा दिन )
हनोई से डानांग की हवाई दूरी महज़ डेढ़ घंटे की है,यहाँ पहुँच कर समुद्र किनारे स्थित सिसिलिया होटल एंड स्पा में डेरा डाला,सुबह आठ बजने से पहले ट्यूर गाइड पहुँच गया,यहाँ के लोग समय के बेहद पाबंद है,जितने बजे आने की बोलेंगे,ठीक उसी समय प्रकट हो जाते हैं,सड़कें और शहर एकदम साफ़ सुथरे और हॉर्न की चिल्लपों तो दुर्लभ ही सुनाई दें,लोग विनम्र,सभ्य, ईमानदार और अन्य लोगों का ख़्याल रखने वाले हैं.प्रोफेशनलिज़्म साफ़ उनके कामों में झलकता है.गाड़ियाँ सड़कों पर स्मूथली चलती रहती है,पर्यटक स्थलों और सिटी सेंटर में भी पार्किंग की सुव्यवस्थित व्यवस्था देखी जा सकती है.
इस साल 30 अप्रेल को वियतनाम की मुक्ति दिवस की स्वर्ण जयंती का राष्ट्रीय महोत्सव होने जा रहा है,जिसमें भाग लेना हमारी इस यात्रा का मुख्य मक़सद है,हम देख रहे हैं कि यहाँ के व्यापारिक प्रतिष्ठान,घर,मार्ग और गोल चक्कर सब लाल झंडे से पट चुके है,युवक युवतियों के झुंड अपनी साइकिलों पर रेड फ़्लैग ले कर रैलियाँ निकाल रहे है,बड़े पैमाने पर भव्य तैयारियाँ चल रही है,उत्सव शुरू हो चुका है,इसकी तैयारियों को देखना भी आनंददायी अनुभव साबित हो रहा है.
इस बीच हमारा भ्रमण का कार्यक्रम भी यथासंभव जारी है,कल डानांग शहर से 25 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित त्रुओन सोन पहाड़ी शृंखला पर स्थित बा ना हिल्स बेहद प्रसिद्ध पर्यटक स्थल पर पहुँचे.यह जगह समुद्र स्थल से क़रीब 1485 मीटर की ऊँचाई पर है,बादल यहाँ आते जाते रहते है,ऊपर गये तो ठंड महसूस हुई.यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का कोई सानी नहीं,पूरी दुनियाँ के घुमक्कडों की यह पसंदीदा जगह है.
सन 1919 में फ़्रांस उपनिवेशवादियों ने इसे एक क्लाइमेट स्टेशन के रूप में बनाया गया.इसकी ठंडी जलवायु यहाँ के गर्म तटीय क्षेत्रों से राहत प्रदान करती है.अमेरिका से युद्ध के दौरान यह क्षेत्र अस्त व्यस्त और ध्वस्त सा होकर उपेक्षित रहा,लेकिन सन 2008 में सनवर्ल्ड नामक निजी कम्पनी ने 15 वर्षों के लिए इसे लीज़ पर ले कर विकसित किया,रोपवे ( केबल कार ) बनाया ताकि पर्यटक यहाँ तक आराम से पहुँच सके,हालाँकि सड़क मार्ग भी है,जो डेढ़ घंटे का सफ़र तय करवा कर ऊपर पहुँचाता है,अब इस मार्ग का उपयोग माल परिवहन हेतु ही किया जाता है,लोग रोपवे वाला रास्ता लेते हैं,जो छह किलोमीटर लम्बा है,पाँच रोपवे वर्तमान में चालू है,क़रीब एक हज़ारी ट्रोली ऐसे चलती दिखाई पड़ती है,जैसे किसी बगीचे में भ्रमर तैरते दिख रहे हों.
बा ना हिल्स तक पहुंचने के लिए विश्व की सबसे लंबी और सबसे ऊंची केबल कारों में से एक है.यह यात्रा अपने आप में रोमांचक है, क्योंकि यह हरे-भरे जंगलों के ऊपर से गुजरती है.बादल इसके नीचे रह जाते हैं.हमारे साथ बैठे यात्रियों के कानों में दर्द होने लगा था तो कुछ इतनी ऊँचाई पर आँखे बंद करके सहमे सहमे से बैठ गए.सन 2014 में वियतनाम की पहली फ्यूनिकुलर सेवा भी यहीं से शुरू की गई थी.क़रीब बीस मिनट का रोमांचक सफ़र रहता है.
गोल्डन ब्रिज 2018 में आम लोगों के लिए खोला गया’ यह 150 मीटर लंबा पैदल पुल बा ना हिल्स का सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है.इसे फाइबरग्लास और वायर मेश से बने दो विशाल पत्थर के हाथों द्वारा सहारा दिया गया है,इसकी डिजाइन और प्राकृतिक पृष्ठभूमि इसे अद्भुत बना देती है.कल गोल्डन ब्रिज मुसाफ़िरों से भरा हुआ था,पाँव रखने को भी जगह न थी,हमारे ट्यूर गाइड आन हाँग ने बमुश्किल हंसराज और मेरा फ़ोटो खींचा.गोल्डन ब्रिज के बाद फूलों वाली घाटी की सैर करना भी एक अलग अनुभव से गुजरना है.यहाँ इंद्रलोक की उर्वशियाँ और रंभाये यत्र तत्र दृष्टिगोचर होती है.ग्रेनाइट पत्थर की मूर्तियाँ जीवंत सी लगती है,संगमरमरी प्रतिमाएँ भी मनमोहक थी,हज़ारों रंग के फूल खिले थे,नेत्र तृप्त हो गए.
लिन्ह उंग पैगोड़ा और खूबसूरत बगीचे प्राकृतिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं.यहाँ की हरियाली और फूलों की सजावट पर्यटकों को आकर्षित करती है.पैगोड़ा में हमने क़रीब आधा घंटा बिताया,बुद्ध की शानदार प्रतिमाएँ यहाँ चारों ओर स्थापित की गई है,ऊपर सफ़ेद मार्बल की 27 मीटर ऊँची बुद्ध प्रतिमा है,पैगोड़ा के अंदर बैठकर हमने कुछ देर ध्यान किया और बाहर आ कर वहाँ लगी विभिन्न भाव भंगिमाओं वाली मूर्तियों को देखा.
दोपहर का भोज बा ना हिल्स पर स्थित भारत रेस्टोरेंट में किया,पीले चावल,लौकी का रायता,बैंगन की सब्ज़ी,करेले की सब्ज़ी,दाल सब कुछ स्वादिष्ट था,रोटी नहीं थी,ब्रेड से काम चलाना पड़ता हैं.भोजन के पश्चात केबल कार द्वारा फ़्रेंच विलेज पहुँचे.बा ना हिल्स में एक कृत्रिम मध्ययुगीन फ्रांसीसी गांव बनाया गया है,जिसमें यूरोपीय शैली की इमारतें,कोबलस्टोन सड़कें,चर्च और कैफे हैं.यहाँ पहुँच कर आपको ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आप यूरोप में हों.जिससे पर्यटकों को फ्रांस की सैर का अहसास होता है.वैसे तो वियतनाम के अलग अलग हिस्सों में घूमते हुए आपको कभी सिंगापुर तो कभी दुबई,कभी यूरोप तो कभी कुछ और जगह पर होने का अहसास होता है.
सन वर्ल्ड बा ना हिल्स का मनोरंजन पार्क है,जिसमें रोलर कोस्टर,थ्रीडी,फोरडी सिनेमाघर,गेम जोन और बच्चों के लिए कई तरह की मनोरंजक गतिविधियाँ शामिल हैं.यहाँ एक बीयर फेक्टरी को अंदर से देखने का अवसर मिला,जहां जौ के धान से बीयर बनने तक की सम्पूर्ण विधि को साक्षात देखा जा सकता है.पूरे वियतनाम में यहाँ उत्पादित होने वाला ब्रांड ‘सन क्राफ़्ट बीयर’ काफ़ी मशहूर है. बीयरसेवी आगंतुकों को यहाँ एक गिलास फोकट में भी दिया जाता है,बाद में वे खुद ही मंगा मंगा कर पीते रहते हैं.
यहाँ से बाहर निकलने पर पाश्चात्य धुनों पर आधारित आर्केस्ट्रा का आनंद लेते सैलानी नाच रहे थे,सामने लगा झरना और उसके दोनों तरफ़ लगी गोल्डन मूर्तियाँ ग़ज़ब ढ़ा रही थी,यहाँ से चले तो एक पुराने चर्च के बाहर अमेरिकन युवती पपेट को सेक्सोफ़ोन की धुन पर नचा रही थी,उसकी कलाकारी देखते बनती है,हम चर्च में गए,सूली पर लटके ईसा की कारुणिक प्रतिमा दर्द का अहसास देती है,चर्च भव्य और स्थापत्य के लिहाज़ से अद्भुत कहा जा सकता है.वापस लौटे तो अर्जेंटीना के कलाकार अपने बैंड पर जो कमाल कर रहे थे,उसे देख सुनकर तो पाँव थम से गए,सब कुछ मंत्रमुग्ध कर देने वाला था,पर लौटने का वक़्त हो चला था,हम केबल कार से पुन: गोल्डन ब्रिज तक गए,वहाँ केबल कार बदली और नीचे को रवाना हुए,अंत में ग्रुप फ़ोटो हुआ और डानांग पहुँचें.
होटल सिसिलिया का स्पा बेहतरीन है,वैसे तो यहाँ सड़क के दोनों तरफ़ फुटपाथ स्पा भी ख़ूब है.जो अपेक्षाकृत सस्ते हैं,मगर वे फुट मसाज के नाम पर बाम रगड़ कर लोकल एनेस्थीसिया दे कर आराम का भ्रम निर्मित कर देते है,हमने होटल के साफ़ सुथरे स्पा में बॉडी ट्रीटमेंट का विकल्प चुना,यह गर्म पत्थरों का सिकाव और आयल मसाज कोंबो है,अच्छा अनुभव रहा,खाना खाने आज भी इंडियन रेस्टोरेंट पंजाब हवेली पर ही पहुँचे,दाल तड़का और तंदूरी रोटी लज़ीज़ थी,नमक ज़रूर ज़्यादा था,पंजाबी संगीत के साथ डिनर हुआ,बीच पर भ्रमण का कार्यक्रम मुल्तवी किया गया,शयन को प्राथमिकता देते हुए होटल लौट आए और जल्दी सो गए,ताकि सूर्योदय का आनंद समंदर किनारे लिया जा सके .
( छठा दिन )
कल की डानांग से एचसीएमसी तक की यात्रा बेहद थकाऊ,उबाऊ और पकाऊ रही,वियतजेट का क्राफ़्ट समय से साढ़े तीन घंटे लेट पहुँचा,अंत तक गेट नम्बर डिस्प्ले नहीं किया,एयरलाइन के कार्मिक जवाब देने में उदासीन थे,इंग्लिश तक ठीक से समझ नहीं पाने से संवाद कठिन था.
वियतनाम में घरेलू उड़ान हेतु अगर आप वियतजेट से जा रहे हैं तो सावधान,उसने डिले होने में दक्षता प्राप्त कर ली है.हम रात होते होते होटल सिसिलिया पहुँचें.नाम एक जैसा लेकिन बिल्कुल ही भिन्न,कमरे बहुत अच्छे है,नाश्ता शानदार है,बेन थान मार्केट के नज़दीक है,हो ची मिन्ह सिटी के पहले ज़िले में स्थित है,लेकिन सर्विस बहुत बुरी है,स्टाफ़ ही नहीं है,जो है,उसे वियतनामी ज़रूर ठीक से आती है,इंग्लिश का उच्चारण इतना भयानक है कि उसे समझने की कोशिश करने जितना तो ज़ोर तो यहाँ की स्थानीय भाषा पर लगाएँ तो वियतनामी समझ आ सकती है,गूगल ट्रांसलिट्रेशन की सेवाएँ लो तब भी उनका सिर सदैव ना में ही हिलता रहता है.
दिन में एयरपोर्ट पर कड़वी कॉफ़ी मात्र 18000 डोंग में आ गई थी,वाक़ई कड़वी,उससे पहले नींद आ रही थी,फिर जो नींद उड़ी तो रात तक नहीं आई.खाना तो सुबह जो ब्रेकफ़ास्ट मिला,वही शाम तक चल गया,एयरपोर्ट पर जितेंद्र भाटिया की म्यानमार यात्रा संस्मरण पर लिखी किताब पढ़ते हुए वक़्त गुज़ारा,एयरपोर्ट के बुक स्टॉल पर भी इंग्लिश किताबें थी,ख़ास तौर पर तिक न्यात हन्ह की लघु पुस्तिकाएँ लेकिन महँगी थी,किताबें उलट पुलट कर देखी और ज्यों की त्यों वहीं धर दी.
होटल पहुँच कर गर्म पानी से नहाकर दिन भर की खीज़ और थकान दोनों उतारे,लघु वस्त्र विन्यास करके होटल तनिष्क वेजिटेरियन रेस्टोरेंट गए,यहाँ की लोकेशन शिवपुर- करेड़ा निवासी नारायण जी सालवी ने भेज दी थी,जो इसी रेस्टोरेंट में शेफ़ है,हमारी होटल से महज़ तीन सौ मीटर दूर,पैदल दो मिनट का रास्ता तय किया,दही भिंडी और मूँग मसाला तथा घी लगे फ़ुल्के ओर्डर किए,नारायण जी आ गए,मिलनी हुई,बाद में उन्होंने जो लज़ीज़ खाना बना कर भेजा,उसके स्वाद ने दिन भर की शिकायत का निवारण कर दिया.
भुगतान करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा,होटल के मालिक अभिषेक कोठारी जी पालनपुर के निवासी है,अस्सी फ़ीसदी स्टाफ़ राजस्थान और गुजरात से हैं,बीस फ़ीसदी वियतनामी है,सब मिलकर काम कर रहे हैं और परदेश में इतना दूर देश के मसालों की ख़ुशबुओं से तर खाना खिलाकर हम भूखों को तृप्त करने में लगे हैं.
होटल पर लौट रूम में जाने पर पानी की कमी का अहसास हुआ तो स्वागत कक्ष को टेलीफ़ोन मिलाया,जवाब बेहद शानदार था कि हमारा रूम में सर्विस देने वाला बंदा चाबी ले कर कहीं चला गया है,उसके आने पर पानी भेजेंगे,मैं इन होटलों के जुमलों को जानता हूँ,भरोसा करने के बजाय वैकल्पिक व्यवस्था में यक़ीन रखता हूँ.बाहर से पानी ख़रीद लाये और लम्बी तान कर सो गए,क्योंकि कल हो ची मिन्ह शहर का भ्रमण करना है.
युद्ध संग्रहालय,प्राचीन पोस्ट ऑफ़िस,राष्ट्रपति भवन,ज़ेक सम्राट पैगोड़ा,विकलांग कलाकारों का गाँव तथा अंतत: वन क्षेत्र में बनाई गई केव देखनी है,ट्यूर गाइड,ग्राउंड टीम तथा होली डे कैफ़े वालों ने हमें सुख भर नींद आये,इसका पक्का प्रबंध कर रखा था.
( सातवाँ दिन )
28 अप्रैल 2025 सुबह की सुनहरी धूप और हो ची मिन्ह शहर की हलचल भरी सड़कों ने हमारे दिन की शुरुआत को उत्साह से भर दिया.हम सुबह-सुबह ही होटल सिसिलिया से निकल पड़े,हम जल्दी तैयार हो जाते हैं,सुबह का नाश्ता करके आज भी तैयार थे इस जीवंत शहर की सैर के लिए,हम लोगों ने एक चक्कर पैदल भ्रमण किया,अभी धीरे धीरे शहर जगता दिख रहा था,लेकिन काम पर जाने वाले कर्मवीरों की क़तारें दिखाई पड़ने लगी थी.
वापस होटल पहुँचे तब तक एक टेक्सी लेने आ चुकी थी,हर वाहन में एक ड्राइवर और एक गाइड अनिवार्य रूप से होता है.हमारा गाइड जिसका नाम आन था,बहुत ही विदूषक प्राणी था,वैसे वो भारत में होता तो स्टेंडअप कोमेडियन होता,हर बात को ऐसे कहता था कि हंसी के फ़व्वारे फूट पड़ते थे,आज हमारी बस में मैं और हंसराज जी दो ही भारतीय थे,बाक़ी यूरोपियन,जापानी और साउथ कोरियन पर्यटक थे,जो सभी महिलाएँ थी,हमने सड़कों पर स्कूटरों की अंतहीन कतारें देखी,ऐसा लगता है कि कोई बाइक रैली निकल रही हो,मगर कहीं भी भारत की तरह हॉर्न की तेज़ धुन नहीं सुनाई पड़ रही थी,सामान्यत: यहाँ के लोग ट्रेफ़िक नियमों का पालन करते हैं और धैर्यवान हैं,हमारे गाइड ने जानकारी दी कि इस देश में छह मिलियन मोटर बाइक हैं,इसे दुपहिया वाहनों का देश ऐसे ही नहीं बोला जाता है,होंडा कम्पनी की मोटर साइकल जो स्कूटी की तरह दिखती है,पर होती इतनी मजबूत है कि लोग उस पर अपनी पूरी दुकान सजा कर चलते हैं,एक बंदा तो गैस की छह टंकियाँ लटकाये जा रहा था.स्थानीय लोगों की विनम्र मुस्कान ने हमें तुरंत वियतनाम की इस आर्थिक नगरी के रंग में रंग दिया और हमारे गाइड की नॉन स्टॉप बातों का तो कहना ही क्या ? जैसे कि यह बातूनी बंदा बातें करने के लिए ही जन्मा हो.
हमारा पहला पड़ाव था बेन थान मार्केट,हो ची मिन्ह का सबसे प्रसिद्ध और जीवंत बाजार,यहाँ आने वाला हर पर्यटक यहाँ ज़रूर आता है,आप अगर मोल भाव करने में कमजोर हैं तो आपसे यहाँ चार गुना पैसे वसूले जा सकते हैं.इस ऐतिहासिक बाजार की संकरी गलियों में रंग-बिरंगे स्टॉल,ताज़े फल,मसालों की खुशबू, और हस्तशिल्प की चमक ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया.इस बाजार में सैकड़ों दुकानें हैं,जहाँ पारंपरिक वियतनामी टोपियाँ (नोन ला),रेशमी स्कार्फ,काजू,वियतनामी ग्रीन टी और कॉफी के पैकेट बिक रहे थे.हमने दो किलो कॉफ़ी और दो तरह की ग्रीन टी ख़रीद ली,30 अप्रेल को साथ ही यहाँ होने वाले राष्ट्रीय उत्सव में पहनने के लिए रेड स्टार टी शर्ट भी ले लिए,बताई क़ीमत से एक चौथाई में सौदा पट गया,हम भी ठहरे मारवाड़ी,ऐसे कैसे हमको कोई ठग सकता हैं भला.
हंसराज जी की नजर वियतनाम लिखी एक हरी टोपी पर अटक गई,उन्होंने गूगल ट्रांसलेटर की मदद से दुकानदार से साथ मोलभाव शुरू किया.उनकी हँसते-मुस्कुराते मोलभाव की कला ने न केवल टोपी की कीमत कम करवाई,बल्कि विक्रेता को भी उसका प्रशंसक बना दिया.हमने बाजार के फूड स्टॉल पर रुककर वियतनामी व्यंजनों का स्वाद लिया.यहाँ के फल बहुत ही ज़्यादा मीठे होते हैं,सोचा कि अगर इनके बीज मिले तो घर ले जाऊँगा,हालाँकि किसी बीज विक्रेता से मुलाक़ात नहीं हो पाने के चलते यह काम नहीं हो सका.ठंडे और मीठे नारियल का पानी पीते हुए,हमने बाजार की भीड़ और ऊर्जा को अपने अंदर समेट लिया और वहाँ से निकल पड़े.
फ्रांसीसी विरासत का प्रतीक बाजार की हलचल के बाद नोट्रे-डेम बेसिलिका की ओर बढ़े,जो शहर के केंद्र में एक शांत और भव्य उपस्थिति रखती है.सन 1880 में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों द्वारा निर्मित यह बेसिलिका अपनी लाल ईंटों और दो 40-मीटर ऊँचे घंटाघरों के साथ बेहद आकर्षक लगती हैं.हमने इसके सामने वाले चौक पर कुछ तस्वीरें खींचीं,जहाँ स्थानीय लोग और पर्यटक सुबह की सैर का आनंद ले रहे थे.हंसराज जी ने कहा,-“यह तो पेरिस जैसा लगता है !” बेसिलिका का शांत आंतरिक भाग,रंगीन कांच की खिड़कियों और प्रार्थना की शांति ने हमें कुछ पल के लिए सुकून दिया.
बेसिलिका के ठीक बगल में स्थित साइगॉन सेंट्रल पोस्ट ऑफिस ने हमें फ्रांसीसी औपनिवेशिक वास्तुकला की भव्यता से रूबरू कराया.सन 1891 में निर्मित यह इमारत,जिसे मशहूर वास्तुकार गुस्ताव एफिल (एफिल टॉवर के डिज़ाइनर) ने डिज़ाइन किया था, आज भी एक कार्यशील डाकघर है.इसके विशाल मेहराब,रंगीन टाइलों वाला फर्श और पुराने लकड़ी के काउंटर हमें 19वीं सदी की याद दिलाते हैं.छत पर नक्काशीदार नक्शे और पुराने टेलीफोन बूथ ने हमारा ध्यान खींचा और हम पोस्टकार्ड खरीदने के लिए आगे बढ़े. हमने इमारत के बीच में स्थित हो ची मिन्ह की एक बड़ी तस्वीर के साथ फोटो खींची,जो इस ऐतिहासिक स्थान का प्रतीक है.
इसके बाद हम दोपहर में युद्ध अवशेष संग्रहालय पहुँचे,जो वियतनाम युद्ध की कहानी को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है.इस संग्रहालय की दीवारों पर तस्वीरें,युद्ध के अवशेष-जैसे बम,बंदूक़ें,टैंक एवं अन्य हथियार और पीड़ितों की कहानियाँ थीं,जिन्होंने हमें गहरे तक प्रभावित किया.विशेष रूप से, “एजेंट ऑरेंज” प्रदर्शनी ने युद्ध की भयावहता को उजागर किया.एजेण्ट ओरेंज एक ऐसा क्रूरतापूर्ण अभियान था,जिसके तहत अमेरिका ने वियतनामी लोगों के हौंसले को तोड़ने के लिए आसमान से केमिकल के रूप में ज़हर बरसा दिया था.इससे खेती और जंगल बर्बाद हो गए,अगली दो पीढ़ियाँ इस विनाश को झेलती हुई पैदा हुई.हंसराज ने वहाँ के फ़ोटो देख कर कहा-मन खिन्न हो गया है आज.हमने संग्रहालय के आंगन में रखे पुराने लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों को भी देखा.यह दौरा भावनात्मक था,लेकिन इसने हमें वियतनाम के लोगों की सहनशक्ति और शांति के प्रति उनके समर्पण को समझने में मदद की.
बाद में हम वियतनाम इतिहास संग्रहालय (नेशनल म्यूजियम) पहुँचे, जो हो ची मिन्ह शहर के बोटैनिकल गार्डन के पास स्थित है.सन 1929 में स्थापित यह संग्रहालय वियतनाम की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का एक खजाना है.इसकी इमारत में फ्रांसीसी और वियतनामी वास्तुकला का सुंदर मिश्रण दिखता है.अंदर हमने प्राचीन चाम सभ्यता के मूर्तिकला कला, न्गोक लू कांस्य ड्रम और वियतनामी सम्राटों के शाही परिधानों को देखा.हमको विशेष रूप से चाम मंदिरों की नक्काशी ने प्रभावित किया.संग्रहालय के शांत माहौल और विस्तृत प्रदर्शन ने हमें वियतनाम की प्राचीन संस्कृति से जोड़ा.यहाँ हमने बंकर देखे,तत्कालीन रेडियो स्टेशन देखा,विशाल रसोई देखी,संग्रहालय का नीचे का हिस्सा बंद था,यहाँ राष्ट्रीय उत्सव की तैयारी चल रही थी.
दोपहर भोज हमने स्पाइस इंडिया रेस्टोरेंट में किया,जो हैदराबादी मुस्लिम सज्जन चलाते हैं,यहाँ का स्वाद हमें दक्षिण भारत ले गया,इडली बड़ा साम्भर का स्वाद और करिपत्ता चटनी आनंदित करने वाली थी.लंच के बाद हम साइगॉन नदी देखने निकले. साइगॉन नदी,जो हो ची मिन्ह शहर की आत्मा है.हमने एक छोटी नाव में सैर का फैसला किया,जो हमें शहर की चमकती रोशनी और नदी की ठंडी हवा के बीच ले गई.नदी के किनारे की ऊँची इमारतें,जैसे बिटेक्सको फाइनेंशियल टॉवर रात में जगमगा रही थीं.नाव पर बैठकर,हमने स्थानीय गोई कुऑन (ताज़ा स्प्रिंग रोल्स) और वियतनामी आइस्ड कॉफी का आनंद लिया.हंसराज जी चाय कॉफी के दीवाने नहीं है,लेकिन मेरे साथ उनको भी बार बार कॉफ़ी पीनी पड़ती थी,एक बार तो उन्होंने मजाक में कहा-“मुझे यह कॉफी मशीन भारत ले चलनी होगी”.नदी की शांति और शहर की जीवंतता का यह मेल हमारे दिन का सही समापन था.हमने नाव से सूरज ढलने का नजारा देखा और इन पलों को अपने दिल में संजो लिया.
हमने नदी के किनारे एक छोटे से रेस्तराँ में रुककर वियतनामी स्ट्रीट फूड का आनंद लिया.हंसराज जी की आनंद भरी मस्ती और सहज हास्य ने इस दिन को और भी खास बना दिया.हो ची मिन्ह शहर ने हमें अपनी संस्कृति,इतिहास और उसके आतिथ्य ने हमारा मन मोह लिया.बेन थान की हलचल बेसिलिका की शांति,पोस्ट ऑफिस की भव्यता,संग्रहालयों का ज्ञान और साइगॉन नदी की सुंदरता,इन सबने मिलकर एक ऐसी याद बनाई जो हमेशा हमारे साथ रहेगी.
( आठवाँ दिन )
अगला दिन हमारे लिए एक ऐसी यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया, जिसने वियतनाम की सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और मानवीय गहराइयों को छू लिया.हमने इस दिन हो ची मिन्ह शहर के पास दो महत्वपूर्ण स्थलों-जेड सम्राट पैगोडा और कु ची बेन डुओक सुरंगों की सैर कर की.इस यात्रा के दौरान,हम एक ऐसी जगह पर भी रुके,जहाँ विकलांग कलाकारों ने अपनी लकड़ी पर लाख की पेंटिंग्स के जरिए हमें मंत्रमुग्ध कर दिया, हालाँकि इस कलाकारों के कृत्रिम गाँव का नाम मेरी स्मृति से धूमिल हो गया है और अभी चाह कर भी उसे याद नहीं कर पा रहा हूँ,शायद एक दिन बिना याद किए अचानक यह याद आयेगा,जैसा कि अक्सर मेरे साथ होता है.
हर दिन की तरह आज भी सुबह सुबह एक वियतनामी रेस्टोरेंट में ताज़े फलों के स्वादिष्ट नाश्ते के बाद यात्रा की शुरुआत सुबह के शांत समय में हुई.हमारे आज के अधिकांश सहयात्री अफ़िक्रन मुल्कों के नागरिक थे,हमारा गाइड बेहद अस्पष्ट इंग्लिश बोल रहा था,जिसे शायद वहीं समझ पाता होगा,हालाँकि हमको बताया गया कि गाइड मुस्तफ़ा है,लेकिन उसने मुस्तफ़ा भी इस तरह बोला कि वह केवल स्पा सुनाई दे रहा था.
हम सबसे पहले हो ची मिन्ह शहर के डिस्ट्रिक्ट 3 में स्थित जेड सम्राट पैगोडा पहुँचे. यह ताओवादी मंदिर,जिसे 1909 में बनाया गया था, अपनी आध्यात्मिक शांति और जटिल वास्तुकला के लिए जाना जाता है.जैसे ही हमने इसके लाल-गुलाबी प्रवेश द्वार को पार किया,धूप की सुगंध और घंटियों की मधुर ध्वनि ने हमारा स्वागत किया.यहाँ मंदिर को पैगोडा कहा जाता है. मंदिर का मुख्य हॉल जेड सम्राट की भव्य मूर्ति से सुशोभित था,जिसके सामने लोग मोमबत्तियाँ और अगरबत्तियाँ जलाकर प्रार्थना कर रहे थे.मंदिर के आंगन में एक छोटा तालाब था,जिसमें कछुए तैर रहे थे.वियतनामी संस्कृति के चार पवित्र जीव जंतुओं में से एक कछुए को लम्बी उम्र का प्रतीक माना जाता हैं.यह दृश्य अच्छा लगा. हंसराज जी ने बेहद फुर्ती से हर बार की भाँति वहाँ की रंग-बिरंगी मूर्तियों और नक्काशीदार दीवारों की भी तस्वीरें खींचीं और ज़रूरी विडीयो ले लिये,जबकि इस दौरान मैंने गाइड और वहाँ मौजूद लोगों से मंदिर के इतिहास और इसके धार्मिक महत्व को समझने की कोशिश की.यहाँ का शांत वातावरण शहर की भागदौड़ से एकदम अलग था और इसने हमें दिन की शुरुआत के लिए तरोताजा कर दिया.
यहाँ लगभग दो घंटे गुज़ारने के बाद हम बस में सवार हुए और एक आर्ट विलेज के लिए निकले.इस डेढ़ घंटे की ड्राइव के दौरान, हम एक ऐसी जगह पर रुके, जहाँ विकलांग लोगों का एक संगठन, एजेण्ट ओरेंज पीड़ितों या अन्य विकलांग व्यक्तियों के लिए समर्पित सामुदायिक केंद्र लाख की पेंटिंग्स बनाता है.यह कार्यशाला कला और मानवीय जज्बे का एक अनूठा संगम थी,यहाँ के कलाकारों ने अंडे के छिलके,सागर के सीप और एक तरल व रंगों का उपयोग करके लाख की पेंटिंग्स बनाईं,जो वियतनाम की प्राकृतिक सुंदरता,ग्रामीण जीवन अप्रतिम सुंदरियों और सांस्कृतिक दृश्यों को दर्शा रही थी.उनकी पेंटिंग्स में चमकदार रंग और महीन विवरण थे,जो लाख की परतों से और भी जीवंत हो उठे थे.एक कलाकार ने हमें अपनी पेंटिंग की कहानी सुनाई,जिसमें एक शांत कमल का तालाब और उसमें खिले फूल दर्शाए गए थे.उनकी मेहनत,धैर्य और रचनात्मकता ने हमें गहरे तक प्रभावित किया.हमने वहाँ से एक छोटी लाख पेंटिंग खरीदनी चाही,लेकिन उसका मूल्य तीन लाख वियतनामी डोंग था,इसलिये नहीं ख़रीदने का निश्चय किया,फ़ोटोग्राफ़ी तो मना थी,लेकिन बाहर लगे पोस्टर से हमने कुछ फ़ोटोज़ ले लिए,जो हमारे लिए प्रेरणादायक अनुभव की स्मृति बन सकेंगे.इस पड़ाव ने हमें कला के माध्यम से मानवता की ताकत और समावेशीपन का एक नया दृष्टिकोण दिया.
रास्ते में हम लोकल लंच के लिए रुके.दोपहर में हम कु ची जिले में बेन डुओक सुरंगों तक पहुँचे,जो हो ची मिन्ह शहर से लगभग डेढ़ घंटे की दूरी पर स्थित है.यह खूबसूरती से संरक्षित स्थल वियतनाम युद्ध के इतिहास को जीवंत रूप से प्रदर्शित करता है,जैसे ही हम वहाँ पहुँचे, हरे-भरे जंगल और मेमोरियल टेम्पल ने हमारा स्वागत किया.गाइड स्पा मुस्तफ़ा ने हमें सुरंगों के इतिहास और वियतकोंग गुरिल्लाओं द्वारा युद्ध के दौरान अपनाई गई तकनीक व रणनीतियों के बारे में विस्तार से बताया.सुरंगों का दौरा एक असाधारण अनुभव था.मैने एक संकरी, अंधेरी सुरंग में प्रवेश किया,जो वियतकोंग द्वारा युद्ध के दौरान इस्तेमाल की गई थी.यह संकरी और घुटन भरी सुरंग उस समय की कठिनाइयों और वियतनामी लोगों की अदम्य सहनशक्ति और बुद्धिमत्ता की याद दिला गई. सुरंगों के अलावा,हमने बंकर,हथियार निर्माण स्थल और अन्य युद्धकालीन अवशेष देखे,जो इतिहास के उस दौर को जीवंत कर रहे थे.गाइड ने हमें बताया कि कैसे वियतकोंग ने इन सुरंगों का उपयोग रणनीति,छिपने और आपूर्ति के लिए किया था.
नेशनल डिफेंस स्पोर्ट्स शूटिंग रेंज सुरंगों के दौरे के बाद,हमने नेशनल डिफेंस स्पोर्ट्स शूटिंग रेंज में कुछ समय बिताया,जो एक रोमांचक अनुभव था.यहाँ हमें एम-16,एके-47 या कार्बाइन राइफल किराए पर लेकर युद्धकालीन अनुभव को और करीब से महसूस करने का मौका मिला.हंसराज जी ने AK-47 आजमाने का फैसला किया,जबकि मैंने इस गतिविधि को दूर से देखने और तस्वीरें लेने में समय बिताया.यह अनुभव थोड़ा रोमांचक होने के साथ-साथ युद्ध के उस दौर की गंभीरता को भी दर्शाता था.यह गतिविधि हमारे ट्यूर पैकेज का हिस्सा नहीं हो कर स्वयं के खर्च पर थी.
अंत में हमने जैक फ़्रूट का नाश्ता किया और ग्रीन लीफ़ टी पी और शाम ढलते-ढलते हम हो ची मिन्ह शहर वापस लौटे,आज शारीरिक रूप से बहुत थक चुके थे,लेकिन भावनात्मक और मानसिक रूप से ख़ूब समृद्ध और ताक़तवर महसूस कर रहे थे.जेड सम्राट पैगोडा की आध्यात्मिक शांति,विकलांग कलाकारों की लाख पेंटिंग्स में झलकती रचनात्मकता,कु ची बेन डुओक सुरंगों का ऐतिहासिक महत्व और शूटिंग रेंज का रोमांच,ये सभी अनुभव मिलकर इस दिन को यादगार बना गए.यह यात्रा केवल वियतनाम की संस्कृति और इतिहास की खोज नहीं थी,बल्कि मानवीय जज्बे,कला की ताकत और इतिहास के सबक का उत्सव थी.हमने न केवल वियतनाम के अतीत को करीब से देखा,बल्कि उन लोगों की कहानियों को भी जाना,जिन्होंने अपने शौर्य,कला और साहस से दुनिया को प्रेरित किया.
( नवाँ दिन )
हमारे लिए वियतनाम की प्राकृतिक सुंदरता,सांस्कृतिक धरोहर और स्थानीय शिल्पकला को करीब से अनुभव करने का एक कभी न भूलना अवसर बन गया.आज हमारे समूह के साथ अधिकांश भारतीय हैं,एक फ़्रेंच फ़ैमिली भी साथ है.आज हमारा गाइड साफा हैं,जो दिन भर फा-फ़ू करता रहा,बोलना बंद करना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं है.हमारी यात्रा की शुरुआत सुबह एक नई,वातानुकूलित टूरिंग वैन में सवार होकर हुई.जो हमें हो ची मिन्ह शहर से तिएन गियांग की ओर ले गई.यह लगभग डेढ़ घंटे की यात्रा थी,जिसमें हमने रास्ते में तिएन गियांग के हरे-भरे चावल के खेतों,छोटे-छोटे गाँवों और नहरों के किनारे बसे जीवन को निहारा.
गाइड ने हमें मेकोंग डेल्टा के महत्व के बारे में बताया,जो वियतनाम का "चावल का कटोरा" कहलाता है और यहाँ की नदियाँ और नहरें स्थानीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति का आधार हैं.वैन की आरामदायक सवारी और ग्रामीण दृश्यों ने हमें दिन के रोमांच के लिए उत्साहित कर दिया.वियतनाम की सड़कें अच्छी है,भारत की तरह कमरतोड़ झटके नहीं प्रदान करती,यहाँ के गाड़ी ड्राइवर भी करुणा से भरे मालूम होते हैं,अचानक ब्रेक नहीं लगाते,स्पीड आम तौर पर सौ की होती है,गाइड और ड्राइवर ग़ज़ब बातूनी बंदे थे,शुरू होते तो रुकने का नाम ही नहीं लेते.
हमारा पहला पड़ाव एक रेशम उत्पादन इकाई थी, शिल्पकला की बारीकियाँ देखने के लिए इस रेशम उत्पादन और विपणन इकाई का दौरा किया,जो स्थानीय शिल्पकला का एक शानदार नमूना प्रतीत हो रही थी. घुसते ही हमें रूम नम्बर पाँच में ले जाया गया,उससे पहले रेशम की चाय हमें पिलाई गई,अलग स्वाद था.यहाँ हमें रेशम बनाने की पूरी प्रक्रिया को करीब से देखने का मौका मिला.यहाँ मौजूद कारीगरों ने हमें बताया कि कैसे रेशम के कीड़े (सिल्कवर्म) कोकोन बनाते हैं,जिन्हें सावधानी से उबालकर रेशम के धागे निकाले जाते हैं. हमने कताई मशीनों को देखा,जहाँ कुशल कारीगर इन धागों को बारीक रेशम के कपड़े में बदल रहे थे.इस इकाई में एक लघु प्रदर्शनी भी सजी हुई थी,जहां रंग-बिरंगे रेशम के स्कार्फ,कपड़े और हस्तनिर्मित परिधान प्रदर्शित किए गए थे.कुछ कारीगरों ने हमें रेशम पर पारंपरिक वियतनामी डिज़ाइन बनाने की कला दिखाई,जो हाथ से की गई कढ़ाई और रंगाई का बेहतरीन नमूना थी.
चौधरी जी ने रेशम के एक सुंदर स्कार्फ को देखकर तारीफ की और हमने वहाँ से चार मीटर के रेशमी स्कार्फ़ ख़रीदे,हंसराज जी ने अपनी पौत्री के लिए एक बहुआयामी रेशम का महँगा वस्त्र लिया,उसे उपयोग में लाने के लिए सीडी भी साथ में दी गई.हालाँकि भारत में पहले काफ़ी बड़ी मात्रा में रेशम का उत्पादन होता था,जो अब शायद केवल राँची में थोड़ा बहुत बचा है,लेकिन यहाँ का रेशम एकदम ओरिजनल होने के चलते हमने यादगार के रूप में लेना उचित समझा.
हम रेशम उत्पादन इकाई देखने के बाद माय थो पहुँचे और मेकोंग नदी के किनारे एक क्रूज़ पर सवार हुए,जो हमें यूनिकॉर्न और फीनिक्स द्वीपों की ओर ले गया.यह क्रूज़ मेकोंग की विशालता और इसके किनारे बसे जीवन को देखने का एक शानदार अवसर था.मेकोंग नदी के किनारे नारियल के पेड़,मछुआरे और छोटी-छोटी नावें इस दृश्य को और जीवंत बना रहे थे.हमने यहाँ व्यावसायिक मत्स्य उत्पादन देखा.
यूनिकॉर्न द्वीप पर हमने एक नारियल कैंडी फैक्ट्री का दौरा किया, जहाँ हमें इस स्थानीय मिठाई को बनाने की प्रक्रिया देखने का मौका मिला.कारीगरों ने ताजे नारियल के दूध को चीनी और अन्य सामग्रियों के साथ मिलाकर कैंडी तैयार की,जिसे बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा गया.हमें दो तीन फ़्लेवर वाली ताजी बनी कैंडी का स्वाद लेने का मौका मिला.इसका मीठा और चिपचिपा स्वाद हमें बहुत पसंद आया.हंसराज जी ने इस प्रक्रिया की तस्वीरें और वीडियो बना लिया.हमने कुछ कैंडी पैक खरीदे.इसके बाद,हमने स्थानीय शहद उत्पादन की प्रक्रिया को देखा.इस मधुमक्खी फार्म में हमें बताया गया कि कैसे मधुमक्खियाँ शहद बनाती हैं और इसे कैसे एकत्र किया जाता है.हमने ताजा शहद,शहद की चाय का स्वाद लिया.शहद की चाय की सुगंध और स्वाद ने हमें तरोताजा कर दिया,जबकि शहद वाइन ने हमें स्थानीय पेय की अनूठी परंपरा से परिचित कराया.स्थानीय लोगों ने हमें अपने जीवन और परंपराओं के बारे में बताया,जिसने इस अनुभव को और समृद्ध बनाया.
इसके बाद हम दस दस के समूह में विभाजित हो कर छोटी नाव में सवार हुए और यूनिकॉर्न द्वीप पर हमें वियतनामी लोक संगीत का आनंद लेने का मौका भी मिला,पारंपरिक वाद्ययंत्रों जैसे डैन बाउ और बाँसुरी की मधुर धुनों ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया.गायकों ने दक्षिणी वियतनाम की लोककथाओं और प्रेम कहानियों पर आधारित गीत प्रस्तुत किए,जिनका अनुवाद हमारे गाइड साफ़ा ने हमें समझाया,जो मुझे तो बिल्कुल भी समझ नहीं आया,पर मैं इस तरह सिर हिलाता रहा जैसे बहुत कुछ समझ रहा हूँ,यहाँ ताज़े फलों का नाश्ता भी दिया गया.
आगे हमने स्नैक वाइन बना कर बेच रहे एक व्यक्ति से मुलाक़ात की,इससे पहले मैने यूट्यूब से यह ज़रूर जाना था कि वियतनाम में कोबरा साँप से लोग शराब बना कर पीते है,लेकिन यहाँ तो स्नैक वाइन आँखों के सामने थी,मैने हिम्मत करके एक घूँट लेने का निश्चय किया,बचपन में साँप में मुझे डँस कर मेरा खून चूंस लिया था,मैं बदला लेने को तत्पर था,सोचा तो बहुत मगर एक घूँट तक नहीं ले पाया,फिर यह भी प्लान किया कि आधी बोतल ख़रीद कर इंडिया साथ ले जाऊँ.लेकिन यह भी योजना अधूरी रही क्योंकि इन बोतलों में साँप और बिच्छू नज़र आ रहे थे,जो भयावह दृश्य उपस्थित कर रहे थे,फ़ाइनली सिर्फ़ एक विडियो और कुछ फ़ोटोग्राफ़ ले कर हम आगे बढ़े यहाँ स्थानीय लोगों के साथ बातचीत ने हमें उनके दैनिक जीवन,खेती और मेकोंग की जीवनशैली के बारे में गहरी जानकारी दी.यहाँ ताजे फल जैसे- रंम्बुटान और अनानास, परोसे गए,जिनका स्वाद लेते हुए हमने इस आतिथ्य का आनंद लिया.
अब दोपहर भोज होगा,लेकिन उसके लिए और भी छोटे ग्रुप में जाना होगा,हम चार लोग एक नाँव में बैठे,यह चपू से चलती है,दोनों तरफ़ वाटर कोकोनट के बड़े बड़े पेड़ थे,मैने पहली बार पानी का नारियल देखा जो किसी कद्दू से कम नहीं था,उसका स्वाद भी लिया और पहुँच गए एक वियतनामी रेस्टोरेंट पर,जो भीड़ से भरा था.
मेकोंग के द्वीपों के दौरे के बाद हम एक स्थानीय रेस्तराँ में रुके,जहाँ हमें पारंपरिक वियतनामी दोपहर भोजन परोसा गया.ट्यूर पैकेज में ब्रेक फ़ास्ट और लंच शामिल था,जिसे लोकल लंच कह कर बोला जाता है.मेज पर ताजा स्प्रिंग रोल्स,चावल के नूडल्स और मेकोंग डेल्टा की मशहूर डिश एलिफेंट ईयर फिश थी.साथ ही आलू,पनीर से बने कईं स्वादिष्ट पकवानों को भी सजाया गया था,हमने इन्हें लेट्यूस,जड़ी-बूटियों और चावल के पेपर में लपेटकर खाया.ताजे फल,जैसे ड्रैगन फ्रूट और रंम्बुटान ने भोजन को और स्वादिष्ट बना दिया.हंसराज जी ने इस अनोखे भोजन की तस्वीरें लीं और हमने स्थानीय लोगों की गर्मजोशी और आतिथ्य की तारीफ की.यह भोजन न केवल पेट के लिए,बल्कि आत्मा के लिए भी तृप्तिदायक था.
विंह त्रांग पैगोडा का भव्य दर्शन हमारा अंतिम पड़ाव माय थो शहर में स्थित विंह त्रांग पैगोडा था,जो तिएन गियांग की सबसे बड़ी और वियतनाम की सबसे खूबसूरत बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक है.19वीं सदी में निर्मित यह पैगोडा 2,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है और अपनी अनूठी वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है.जैसे ही हम इसके विशाल प्रवेश द्वार पर पहुँचे,सात मंजिला मीनार और रंग-बिरंगे मोज़ाइक ने हमारा ध्यान खींचा. पैगोडा का परिसर शांत और विशाल था,जो हमें तुरंत एक आध्यात्मिक माहौल में ले गया.
बुद्ध की भव्य मूर्तियाँ पैगोडा के परिसर में हमें चार विशाल बुद्ध मूर्तियों लेडी बुद्धा,लाफिंग बुद्धा,वॉकिंग बुद्धा और स्लीपिंग बुद्धा के दर्शन करने का सौभाग्य मिला.लेडी बुद्धा की मूर्ति अपनी करुणा और शांति से भरी मुस्कान के साथ खड़ी थी,जबकि लाफिंग बुद्धा की विशाल मूर्ति ने हमें अपनी हँसमुख मुद्रा से आकर्षित किया.
हंसराज जी ने अपने दोनों हाथ फैला कर ज़बर्द्श्त अट्टहास किया,आसपास के लोग देखने लगे,पर हम तो मस्ती में थे,मैने उनका विडियो ले लिया,वॉकिंग बुद्धा की गतिशील मूर्ति और स्लीपिंग बुद्धा की शांत लेटी हुई आकृति ने हमें बौद्ध दर्शन की गहराई को महसूस कराया.यहाँ लगी हर प्रतिमा बहुत जीवंत थी,हंसजी ने इन तमाम मूर्तियों की तस्वीरें लेने में कोई समय नहीं लगाया,वे इस ट्रिप के ग्रेट फ़ोटोग्राफ़र का ख़िताब प्राप्त कर चुके है.
इस सुप्रसिद्ध सात मंज़िला पैगोडा के परिसर में एक छोटी लेकिन प्रभावशाली लाइब्रेरी भी थी,जिसमें बौद्ध ग्रंथ और धार्मिक साहित्य संग्रहीत थे.यहाँ मुझे एक धम्मपद मिला जो पाली से वियतनामी में भिक्खु बोधि द्वारा अनुवाद किया हुआ था,सारी किताबें वियतनामी भाषा में ही थी,एक भी इंग्लिश तक नहीं,यहाँ बैठे लाइब्रेरीयन को भी और कोई भाषा नहीं आती,लेकिन हमने एक बौद्ध भिक्खु की सहायता ली और इस बारे एक जानकारी प्राप्त की,जब उन्होंने जाना कि हम भारत से हैं तो वे खुश हुए,उन्होंने कहा कि आप तो बुद्ध की धरती से आए हैं,लाइब्रेरी का शांत वातावरण और किताबों की व्यवस्था ने हमें प्रभावित किया.
हमें बताया गया कि यह लाइब्रेरी स्थानीय समुदाय के लिए ज्ञान और ध्यान का केंद्र है.इसके अलावा, पैगोडा के बगीचे में रंग-बिरंगे फूल,छोटे तालाब और नक्काशीदार पत्थरों ने परिसर की सुंदरता को और बढ़ा दिया.इस दौरे ने हमें वियतनामी बौद्ध संस्कृति की गहराई से परिचित कराया. एक चीज़ यहाँ भी हमने गौर की वह थी बुद्ध और मार्क्स के ध्वज एक साथ फ़हरा रहे थे.
शाम ढलते-ढलते,हमारी वातानुकूलित टूरिंग वैन हमें सुरक्षित रूप से हो ची मिन्ह शहर में हमारे होटल तक वापस ले आई.हम आज काफ़ी रूप से थके हुए थे,लेकिन भावनात्मक और मानसिक रूप से समृद्ध,हमने भारत के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र के बंदों के द्वारा संचालित गेटवे ऑफ़ इंडिया रेस्टोरेंट में पूरी भाजी का आनंद लिया और मीठी नींद सोने पहुँच गए.
विंह त्रांग पैगोडा की आध्यात्मिक भव्यता,मेकोंग की नहरों में क्रूज़, नारियल कैंडी और शहद उत्पादन की शिल्पकला,रेशम की बारीक कारीगरी,लोक संगीत की मधुर धुनें और स्वादिष्ट भोजन ये सभी हमारे दिल में बस गए.यह यात्रा न केवल वियतनाम की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और शिल्प संपदा की खोज थी,बल्कि स्थानीय लोगों की गर्मजोशी,परंपराओं और जीवनशैली को समझने का एक अनमोल अवसर भी थी.
( दसवाँ दिन )
30 अप्रैल 2025 को मैं हंसराज जी चौधरी हो ची मिन्ह शहर की जन सैलाबी सड़कों पर थे,जहाँ वियतनामी अपनी ऐतिहासिक जीत और राष्ट्रीय एकीकरण की 50वीं वर्षगांठ मना रहे थे.यह दिन न केवल वियतनाम के लिए,बल्कि हमारे लिए भी एक अविस्मरणीय अनुभव बन गया.लाल झंडों से सजी सड़कें,रेड स्टार वाली टी-शर्ट्स और लाखों लोगों का उत्साह इस उत्सव को एक जीवंत और भावनात्मक रंग दे रहा था.वियतनाम के रियूनिफ़िकेशन का पचासवा समारोह होने के चलते लोग सुबह पाँच बजे से सड़कों पर जमा होने लगे हैं.
साढ़े छह जब हम होटल से नीचे उतरे तो सड़कों पर अपार जन समूह था, फुटफ़ाथ पर लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया था, हर दो सौ मीटर पर लाउडस्पीकर लगा था और हर चौराहे पर एलईडी पर हनोई में चल रहे मुख्य समारोह का सीधा प्रसारण चल रहा था, बच्चे वृद्ध युवा स्त्री पुरुष सबके हाथों में रेड स्टार ध्वज था और वे टी शर्ट भी लाल कलर का पहने थे,हमने भी कल रेड स्टार टी शर्ट ख़रीदे थे, लेकिन एक किराना स्टोर से सामान ख़रीदते वक़्त वहीं भूल आए, सुबह पता चला, तब तक सब जाम हो गया,आज का दिन ऐसे ही अस्त व्यस्त रहेगा,ऐसा लग रहा है.
दस बज चुकी है लेकिन सड़के अभी भी लोगों से भरी है,देश प्रेम का ऐसा ज्वार तो हम अपने मुल्क में नहीं देखते, कह रहे हैं कि शाम को आर्मी परेड होगी,लेकिन दिन में करें दस घंटे मार्केट ओपन होगा,हमारे होटल ने हर दिन की तरह आज भी समय पर नाश्ता परोसा, मैने नियम बना लिया है कि जो चीज़ें समझ नहीं आए वो नहीं खानी,यहाँ तक चाय पीना तक छोड़ रखा,सिर्फ़ फल पत्ते और उबले हुए आलू,शक्करकंदी और मक्के खाता हूँ,फल तो अत्यंत मीठे है,आम खाओ,या अमरूद, चीकू खाइये अथवा ड्रेगन फ़्रूट,जैक फ़्रूट का तो जवाब ही नहीं हैं.
सुबह की पहली किरण के साथ ही हो ची मिन्ह शहर जाग उठा था.मैं और हंसराज जी अपने होटल से बाहर निकले और सड़कों पर लाल-पीले राष्ट्रीय ध्वजों की लहर देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। हर कोने पर वियतनाम का झंडा, जिसके बीच में सुनहरा तारा चमक रहा था, लहरा रहा था.हमने अपने हाथों में छोटे-छोटे लाल झंडे लिए,जो हमें स्थानीय बाजार से मिले थे.
शहर का माहौल उत्सवी था और हवा में देशभक्ति का जुनून महसूस हो रहा था.हमने सबसे पहले इंडिपेंडेंस पैलेस की ओर रुख किया,जो 30 अप्रैल 1975 को उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना था,जब उत्तरी वियतनामी टैंक ने इसके गेट को तोड़ा और साइगॉन पर कब्जा कर लिया.यह वह दिन था,जब वियतनाम युद्ध समाप्त हुआ और देश का विभाजन खत्म होकर एकीकरण हुआ.पैलेस के बाहर हजारों लोग जमा थे.बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी अपने चेहरों पर राष्ट्रीय ध्वज के रंगों के साथ उत्साह में डूबे थे.मैंने देखा कि कई लोग वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतीक-हथौड़ा और दरांती वाले बैनर लिए हुए थे.
30 अप्रैल 1975 के इस उत्सव को समझने के लिए उस ऐतिहासिक दिन को याद करना जरूरी है.1955 से 1975 तक चला वियतनाम युद्ध शीत युद्ध का एक प्रमुख छद्म युद्ध था, जिसमें उत्तरी वियतनाम (सोवियत संघ और चीन द्वारा समर्थित) और दक्षिण वियतनाम (अमेरिका और अन्य साम्यवाद-विरोधी देशों द्वारा समर्थित) आमने-सामने थे.यह युद्ध न केवल सैन्य संघर्ष था,बल्कि स्वतंत्रता और विचारधारा की लड़ाई भी था.वियत मिन्ह,जिसे बाद में वियत कॉन्ग के नाम से जाना गया ने हो ची मिन्ह के नेतृत्व में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद और फिर अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी.
30 अप्रैल 1975 को उत्तरी वियतनामी सेना और वियत कॉन्ग ने साइगॉन पर कब्जा कर लिया.उस दिन टैंक ने इंडिपेंडेंस पैलेस के गेट को तोड़ा और दक्षिण वियतनामी सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया.इस जीत ने वियतनाम युद्ध को समाप्त किया और देश को एकीकृत कर समाजवादी गणराज्य की नींव रखी.साइगॉन का नाम बदलकर हो ची मिन्ह सिटी कर दिया गया,जो वियतनाम के क्रांतिकारी नेता हो ची मिन्ह को श्रद्धांजलि थी.इस युद्ध में लगभग 20 लाख वियतनामी और 58,000 अमेरिकी सैनिक मारे गए और देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी,लेकिन 1975 की यह जीत वियतनामी लोगों के लिए स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक बन गई.
दोपहर होते-होते हम बा दिन्ह स्क्वायर पहुँचे, जहाँ वियतनाम की सबसे बड़ी सैन्य परेड का आयोजन हो रहा था.यह परेड 50वीं वर्षगांठ का मुख्य आकर्षण थी.वियतनामी सेना के साथ-साथ चीन,लाओस और कंबोडिया के सैनिकों ने भी इसमें हिस्सा लिया.हेलिकॉप्टर और विमान राष्ट्रीय ध्वज के साथ आसमान में उड़ान भर रहे थे.परेड में एक झांकी थी,जिसमें वियतनाम के पौराणिक पक्षी ‘लाक’ की आकृति थी,जो समृद्धि और शांति का प्रतीक है.दूसरी झांकी में हो ची मिन्ह का चित्र था,जिसे देखकर भीड़ ने जोरदार तालियाँ बजाईं.
हम भी भीड़ के साथ शामिल हो गए.हमने अपने लाल झंडे लहराए,जो स्थानीय लोग गा रहे थे.एक स्थानीय युवक ने हमें बताया कि यह परेड न केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन है,बल्कि वियतनाम की सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति को भी दर्शाती है.सन 1986 के बाद जब वियतनाम ने ‘डोई मोई’ (आर्थिक सुधार) नीति अपनाई,देश ने तेजी से प्रगति की.आज वियतनाम दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है.परेड के बाद सांस्कृतिक प्रदर्शन शुरू हुए.चाम नृत्य जो वियतनाम के स्वदेशी चाम समुदाय की कला है,उसने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.
हमने सड़कों पर जगह जगह लगे एलईडी स्क्रीन पर इस समारोह का महत्व समझते हुए वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तो लाम का भाषण सुना जो इस दिन को देश की एकता का प्रतीक बता रहे थे.उनके शब्दों में-“सभी वियतनामी इस देश की संतान हैं और उन्हें यहाँ जीने,काम करने,प्रेम और खुशियों की तलाश का पूरा अधिकार है.” यह उत्सव न केवल अतीत की जीत का जश्न था,बल्कि भविष्य के लिए एक संदेश भी था-शांति,एकता और प्रगति.कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन और लाओस के कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव थोंगलुन सिसोलिथ की उपस्थिति ने इस आयोजन को क्षेत्रीय एकजुटता का प्रतीक बना दिया.
हमारे लिए यह दिन सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि वियतनाम की आत्मा को समझने का मौका था.हंसराज जी और मैंने स्थानीय लोगों के साथ बातचीत कर उनकी कहानियाँ सुनकर एक अनोखा जुड़ाव महसूस किया.उनकी देशभक्ति,उनके संघर्ष और उनकी जीत की कहानी ने हमें प्रेरित किया.मार्केट खुल गया था,हमें अपना रेड स्टार टी-शर्ट मिल गया था,जिसे हमने पहन लिया.यह टी शर्ट और लाल झंडा हमारे लिए सिर्फ प्रतीक नहीं थे,वे उस भावना का हिस्सा थे,जो वियतनाम को एकजुट करती है.
अब लंच का समय हो चुका है.आज का दोपहर भोज हमारे गृह जिले भीलवाड़ा के माण्डल विधानसभा क्षेत्र के करेड़ा तहसील के शिवपुर गाँव के निवासी नारायण जी सालवी की तरफ़ से आयोजित था.नारायण भाई की मेहमान नवाज़ी और परदेश में दाल,बाटी-चूरमे का आनंद लेने का यह सुअवसर स्वतः ही बन गया. यूँ तो जब से हो ची मिन्ह शहर आए हैं,एक शाम को छोड़ कर हर डिनर हमने तनिष्क इंडियन रेस्टोरेंट में ही किया,हर दिन देश के अलग अलग प्रदेश के स्वाद आते रहे,पहले दिन दही भिंडी,दूसरे दिन बेसन गट्टा और तीसरे दिन दाल बाटी चूरमा ! यह शानदार भोज इसलिए सम्भव हुआ क्योंकि नारायण जी सालवी यहाँ मुख्य शेफ़ है,उनको भारतीय भोजन बनाने में बरसों से महारत हासिल है,भारत में रेस्टोरेंट लाइन में आठ साल काम करने के बाद उन्होंने चार साल कुवैत और दो साल साउथ अफ़्रीका में बिताये और अब एक साल से वियतनाम में हैं.क़रीब बाइस साल का उनका अनुभव उनके द्वारा निर्मित भोजन में साफ़ झलकता है.
हम साईगोन नदी किनारे और ह्यूमेन स्ट्रीट पर आयोजित संध्याक़ालीन आयोजन छोड़ दिए क्योंकि चार बजे बाद हमको एयरपोर्ट निकलना पड़ा,ड्राइवर बेहद विनम्र और सभ्य तथा फुर्तीला नवजवान था,उसने समय से पूर्व हमको विमानतल पर छोड़ दिया,अपने पासपोर्ट पर वियतनाम की सील लगवा ली और लगेज ड्रॉप किया और बोर्डिंग पास लेकर सुरक्षा जाँच के बाद अब हम गेट नम्बर 14 पर पहुँच गए,जहां से तय समय 7.30 बजे वियतजेट की उड़ान से दिल्ली के लिए निकले.
रात एक बजे दिल्ली उतरे,ट्रेन सुबह चार बजे ओल्ड दिल्ली स्टेशन से थी,दो बजे जंक्शन पहुँचे,छोटे बेटे ललित ने पोटर के ज़रिए लज़ीज़ खाना भेज दिया था,उसे खा कर तृप्त हुए तो नींद सताने लगी,तय हुआ कि मोर्निंग वॉक की जाए,रात तीन बजे से चार बजे तक दस हज़ार कदम चल कर ट्रेन में जा धँसे,सुबह दस बजे जयपुर पहुँच कर जगा,हंस राज जी अजमेर के लिए निकले और मैं ऑफ़िस के लिए ताकि अगली यात्रा के लिए दूसरा बैग पैक कर सकूँ,क्योंकि अगले ही दिन असम,मेघालय और अरुणाचल प्रदेश की 13 दिवसीय यात्रा हेतु निकलना है.